Blog

अविश्वसनीय “जया एकादशी व्रत कथा: 2024” (मोक्ष प्राप्ति)

अविश्वसनीय "जया एकादशी व्रत कथा: 2024" (मोक्ष प्राप्ति)

अविश्वसनीय “जया एकादशी व्रत कथा: 2024” (मोक्ष प्राप्ति):-
एक प्राचीन कहानी है जो भक्ति, उपासना, और भगवान की कृपा के माध्यम से दुखों के परिहार का अद्भूत उदाहरण प्रस्तुत करती है। इस कथा के माध्यम से हमें यह सिखने को मिलता है कि भगवान की भक्ति और सच्चे मन से आराधना करने से, कैसे व्यक्ति अपने कष्टों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी मनाई जाती है, जिसमें भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। इस एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है, और इसका पालन करने से पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी व्रत किया जाता है। इस बार जया एकादशी व्रत 20 फरवरी को है। 

अविश्वसनीय जया एकादशी व्रत कथा:

एक पौराणिक कथा के अनुसार, इंद्र लोक में एक महान सभा थी, जिसमें सभी देवता और संत उपस्थित थे। इस सभा में एक दिव्य गायन और नृत्य कार्यक्रम चल रहा था। वहा उपस्थित आदर्श गंधर्व नामक एक गायक थे, जिनका नाम माल्यवान था। माल्यवान अपने अत्यंत सुरीले स्वरों, से देवताओं को भी मोहित करने में सक्षम थे।

देवताओं की सभा में गंधर्वों की सुंदर गायन और नृत्य का समावेश था। गंधर्व कन्याएं नृत्य और गायन बेहद उत्साह के साथ कर रही थी। इस दौरान नृत्य कर रही पुष्यवती की दृष्टि गंधर्व माल्यवान पर पड़ गई। माल्यवान के यौवन पर पुष्यवती मोहित हो गई। इससे वह सुध-बुध खो बैठी और अपनी लय-ताल से भटक गई। और दूसरी तरफ माल्यवान भी पुष्यवती की सुंदरता और उसके अद्वितीय नृत्य को देखकर मोहित हो गए और  पुष्यवती के प्रेम में पड़ गए जिस कारण माल्यवान का नृत्य और गायन भंग हो गया, जिससे सभा में उपस्थित सभी लोग क्रोधित हो उठे। यह दृष्य देख स्वर्ग नरेश इंद्र भी क्रोधित हुए और उन्होंने दोनों को स्वर्ग से बाहर कर दिया। साथ ही उनको यह श्राप दिया कि तुम दोनों को प्रेत योनि प्राप्त हो जाएगी। 

श्राप के असर से माल्यवान और पुष्यवती प्रेत योनि में चले गए प्रेत योनि अधिक कष्टदायक थी। और वहां जाकर उनको कई दुखों का सामना करना पड़ा। प्रेत योनि से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने एक बार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी को अन्न का सेवन नहीं किया। दिन में एक बार फलाहार किया। इस दौरान दोनों ने जगत के पालनहार भगवान विष्णु का सुमिरन किया। दोनों की भक्ति भाव को देखकर भगवान नारायण ने पुष्यवती और माल्यवान को प्रेत योनि से मुक्त कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें दिव्य शरीर प्राप्त हुआ और वे पुनः स्वर्ग चले गए।

Read More: मंदिर में प्रवेश से पहले घंटी बजाने का (धार्मिक और वैज्ञानिक) महत्व

एकादशी व्रत करने से होती है मोक्ष की प्राप्ति
भगवान श्रीहरि के आशीर्वाद से दोनों को सुंदर शरीर प्राप्त हुआ और वह फिर से स्वर्गलोक चले गए। जब वहां पहुंचकर इंद्र को प्रणाम किया, तो वह चौंक गए। और उन्होंने उनसे पिशाच योनि से मुक्ति का उपाय पूछा। इसके बाद माल्यवान ने बताया कि एकादशी व्रत के असर और भगवान विष्णु की कृपा से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति मिली है। इसी प्रकार जो व्यक्ति जया एकादशी का व्रत रखता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
एकादशी व्रत का महत्व और इसके पालन से, व्रती व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है, बल्कि उन्हें शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की भी सुरक्षा मिलती है। इस व्रत के द्वारा, व्रती व्यक्ति अपने अंतरंग और बाह्य दोनों ही क्षेत्रों में सुधार कर सकते हैं।

जया एकादशी व्रत को आचरण करने से व्रती को आत्मिक शांति, संतुलन, और समृद्धि का अनुभव होता है। यह व्रत उनकी भगवान के प्रति श्रद्धा और भक्ति को मजबूत करता है और उन्हें सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचने में मदद करता है।

जया एकादशी व्रत कथा के माध्यम से हमें यह सिखने को मिलता है कि अगर कोई व्यक्ति प्रेम में और धर्म में सच्चा है, तो भगवान की कृपा से उसकी सभी कठिनाईयों का समाधान हो सकता है। जया एकादशी व्रत के द्वारा हम यह सिख सकते हैं कि सात्विक भावना, नियमित पूजा, और आध्यात्मिक साधना के माध्यम से हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।

इस प्रकार, अविश्वसनीय जया एकादशी व्रत कथा हमें एक उत्कृष्ट धार्मिक उपकारी और सत्य धरोहर के रूप में उचित सम्मान देने का अवसर प्रदान करती है। इस व्रत के माध्यम से हम अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं और भगवान की कृपा को प्राप्त कर सकते हैं।

Read More: 10 चत्मकारी फायदे सूर्य देव को सुबह उठकर जल चढ़ाने के

जया एकादशी की पूजन विधि:

1. जया एकादशी का व्रत करने से एक दिन पहले दशमी के दिन भोजन में सात्विक आहार लेना चाहिए और व्रती को संयमित और पवित्र रहना चाहिए।

2. पूजा और आराधना: जया एकादशी के दिन व्रती व्यक्ति को पूर्व संध्या के समय भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इसमें श्रीकृष्ण अवतार की मूर्ति, अचमन, धूप, दीप, फल, पुष्प और पंचामृत की आराधना शामिल होनी चाहिए।

3. पारण: जया एकादशी के द्वादशी के दिन व्रती व्यक्ति को नींबू व गुड़ के साथ पानी में एक-दो बूँदें डालकर पीना चाहिए, जिससे व्रत को समाप्त किया जा सकता है। उसके बाद ब्राह्मणों या ब्राह्मणी को भोजन और धन-दक्षिणा देना चाहिए।

इस प्रकार, जया एकादशी का व्रत आदर्श भक्ति और धार्मिक साधना का एक माध्यम है जो व्यक्ति को आत्मशुद्धि और सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करता है।

Read More: सुबह उठकर करें ये 3 काम: हर कदम पर मिलेगी सफलता

chhotepandit

Share
Published by
chhotepandit

Recent Posts

पूजा करते समय सिर ढकने का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व? जानिए कारण

पूजा करते समय सिर ढकने का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व? जानिए कारण पूजा-पाठ के समय…

5 months ago

माथे पर तिलक लगाने का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व:

माथे पर तिलक लगाने का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व: माथे पर तिलक लगाना हिंदू धर्म में…

7 months ago

संतोषी माता की आरती (सुख और समृद्धि पाए)

संतोषी माता की आरती (सुख और समृद्धि पाए) जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता।अपने…

7 months ago

शंख बजाने के धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व:

शंख बजाने के धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व: शंख को हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता…

7 months ago

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥​

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥ अयं - यहनिजः - अपनापरो…

8 months ago

महाशिवरात्रि स्पेशल आरती (शिव कृपा पाए)

महाशिवरात्रि स्पेशल आरती (शिव कृपा पाए) जय शिव ओंकारा, स्वामी ॐ जय शिव ओंकारा ।ब्रह्मा…

9 months ago